कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
Log Pagdandiyan Banayenge | Lakshmishankar Vajpeyi
लोग पगडंडियाँ बनाएँगें। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी रास्ते जब नज़र न आएँगेलोग पगडंडियाँ बनाएँगे।खुश न हो कर्ज़ के उजालों सेये अँधेरे भी साथ लाएँगे।ख़ौफ़ सारे ग्रहों पे है कि व...
Jeevan Ki Jai | Maithlisharan Gupt
जीवन की जय। मैथिलीशरण गुप्तमृषा मृत्यु का भय है,जीवन की ही जय है।जीवन ही जड़ जमा रहा है,निज नव वैभव कमा रहा है,पिता-पुत्र में समा रहा है,यह आत्मा अक्षय है,जीवन की ही ज...