कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
Awara Ke Daag Chahiye | Devi Prasad Mishra
आवारा के दाग़ चाहिए | देवी प्रसाद मिश्रदो वक़्तों का कम से कम तो भात चाहिएगात चाहिए जो न काँपेसत्ता के सम्मुख जो कह दूँबात चाहिए कि छिप जाने को रात चाहिएपूरी उम्र लगें ...
Lagaav | Ramdarash Mishra
लगाव | रामदरश मिश्र उसने कविता में लिखा 'फूल'तुमने उसे काटकर 'कीचड़' लिख दियाउसने कविता में लिखा 'चिड़िया'तुमने उसे काटकर 'गुरिल्ला' लिख दियाऔर आपस में जूझने लगेदरअसल ...