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Aana | Kailash Manhar

आना |  कैलाश मनहरआऊँगाबारिश से भीगे खेतों परक्वार की धूप बनकरचमकता-सा....आऊँगाथके हुए बदन की रगों मेंधारोष्ण दूध की तरहउफनता-सा....आऊँगारूठी हुई प्रेमिका की आँखों मेंम...

Raag Bhatiyali | Kunwar Narayan

राग भटियाली | कुँवर नारायण एक राग है भटियालीबाउल संगीत से जुड़ा हुआअंतिम स्वर को खुला छोड़ दिया जाता हैवायुमंडल में लहराता हुआजैसे संपूर्ण जीवन राग से युक्त हुई एक ध्व...

Ek Nanha Sa Keeda | Gyanendrapati

एक नन्हा-सा कीड़ा | ज्ञानेन्द्रपति  यह एक नन्हा-सा कीड़ाअभी जिसको मसल जाता पैरजीवन की क्षणभंगुरता पर विचारने का एक लमहाएक ठिठका हुआ क्षणजिसको जल्दी से लाँघने मेंनहीं द...

Bhookh | Naresh Saxena

भूख | नरेश सक्सेनाभूख सबसे पहले दिमाग़ खाती हैउसके बाद आँखेंफिर जिस्म में बाक़ी बची चीज़ों कोछोड़ती कुछ भी नहीं है भूखवह रिश्तों को खाती हैमाँ का हो बहन या बच्चों काबच...

Tumhe Darr Hai | Gorakh Pandey

तुम्हें डर है | गोरख पांडेयहज़ार साल पुराना है उनका ग़ुस्साहज़ार साल पुरानी है उनकी नफ़रतमैं तो सिर्फ़उनके बिखरे हुए शब्दों कोलय और तुक के साथलौटा रहा हूँमगर तुम्हें ड...

Raahein | Narendra Sharma

राहें | नरेंद्र शर्माकुहरा छाया है गिरि-वन पर,गिरि-शिखरों पर;नहीं रहा आकाश आज आकाश,घिरे हैं बादल धौरे;मैं नीचे समतल पठार परचला जा रहा—लेकिन ऊँचे तल की राहेंधुँधग्रस्त ...

Din Baune Ho Gaye | Umakant Malviya

दिन बौने हो गए | उमाकांत मालवीयरातें लम्बी हुईंदिन बौने हो गए ।ठिगने कद वाले दिनलम्बी परछाइयाँधूप की इकाई परतिमिर की दहाइयाँरातें पत्तल हुईंदिन दौने हो गए ।कुहरों पर ल...

Kuch Ishq Kia Kuch Kaam Kia | Faiz Ahmed Faiz

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया/ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़कुछ इश्क़ किया कुछ काम कियावो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थेजो इश्क़ को काम समझते थेया काम से आशिक़ी करते थेहम जीते-जी मसरूफ़ रह...

Purani Haveli | Khagendra Thakur

पुरानी हवेली | खगेंद्र ठाकुरइस हवेली सेगाँव में आदी-गुड़ बंटेसोहर की धुन सुनेबहुत दिन हो गए इस हवेली सेसत्यनारायण का प्रसाद बंटेघड़ी-घंट की आवाज सुनेबहुत दिन हो गए इस ...

Deewana Dil | Nasira Sharma

दीवाना दिल - नासिरा शर्मा अक्सर सोचती हूँ मैंजब भी मैंने चलना चाहा तुम्हें लेकर अपने संगनहीं समझ पाए तुम वह राहेंतुम्हारे खेतों से उगी गेंहूँ की बालियों सेफूटे दानों क...

Sambandhon Ke Thande Ghar Mein | Amarnath Srivastava

सम्बन्धों के ठंडे घर में | अमरनाथ श्रीवास्तवसम्बन्धों के ठंडे घर मेंवैसे तो सबकुछ है लेकिनइतने नीचे तापमान पररक्तचाप बेहद खलता है|दिनचर्या कोरी दिनचर्याघटनायें कोरी घट...

Mrityu Geet | Langston Hughes | Dharmvir Bharti

मृत्यु-गीत | लैंग्स्टन ह्यूज़अनुवाद : धर्मवीर भारतीमातम के नक़्क़ारे बजाओ मेरे लिए,मातम और मौत के नक़्क़ारे बजाओ मेरे लिएऔर भीड़ से कह दो कि मिल कर के मरसिया गाएताकि उसकी ...

Mrit Ghoshit | Ankita Anand

मृत घोषित | अंकिता आनंदउसके आख़िरी दिनों मेंकभी टूथपेस्ट के ट्यूब कोदो टुकड़ों में काटा हो,तो तुमने देखा होगाकितना कुछ बचा रह जाता हैतब भी जब लगता हैसब ख़त्म हो गया।ज़िंदग...

Unhone Ghar Banaye | Agyeya

उन्होंने घर बनाये  - अज्ञेय उन्होंने घर बनायेऔर आगे बढ़ गयेजहाँ वे और घर बनाएँगे।हम ने वे घर बसायेऔर उन्हीं में जम गये :वहीं नस्ल बढ़ाएँगेऔर मर जाएँगे।इस से आगेकहानी क...

Dharti Par Hazaar Cheezain Thin | Anupam Singh

धरती पर हज़ार चीजें थीं काली और खूबसूरत | अनुपम सिंह धरती पर हज़ार चीजें थींकाली और खूबसूरतउनके मुँह का स्वादमेरा ही रंग देख बिगड़ता थावे मुझे अपने दरवाज़े से ऐसे पुकार...

Chuka Bhi Hun Main Nahin | Shamsher Bahadur Singh

चुका भी हूँ मैं नहीं - शमशेर बहादुर सिंहचुका भी हूँ मैं नहींकहाँ किया मैनें प्रेमअभी ।जब करूँगा प्रेमपिघल उठेंगेयुगों के भूधरउफन उठेंगेसात सागर ।किंतु मैं हूँ मौन आजकह...

Ladki | Anjana Verma

लड़की | अंजना वर्मागर्मी की धूप मेंसुर्ख़ बौगेनवीलिया कीएक उठी हुई टहनी की तरहवह पतली लड़कीगर्म हवा झेलतीसाइकिल के पैडल मारतीचली जा रही हैवह जब भी निकलती है बाहरकालेज ...

Nayi Bhookh | Hemant Deolekar

नई भूख | हेमंत देवलेकर भूख से तड़पते हुए भी आदमी रोटी नहीं  मांगतावह चिल्लाता है 'गति...गति!!तेज़...और तेज़...इससे तेज़ क्यों नहीं'कभी न स्थगित होने वाली वासना है गतिहमारे...

Tum Nahi Samjhogey | Bhavani Prasad Mishra

तुम नहीं समझोगे | भवानीप्रसाद मिश्रतुम नहीं समझोगे केवल किया हुआइसलिए अपने किए परवाणी फेरता हूँऔर लगता है मुझेउस पर लगभग पानी फेरता हूँतब भी नहीं समझते तुमतो मैं उलझ ज...

Daud | Kumar Ambuj

दौड़ -कुमार अम्बुज मुझे नहीं पता मैं कब से एक दौड़ में शामिल हूँविशाल अंतहीन भीड़ है जिसके साथ दौड़ रहा हूँ मैंगलियों में, सड़कों पर, घरों की छतों पर, तहखानों मेंतनी ह...

Phoota Prabhat | Bharat Bhushan Aggarwal

फूटा प्रभात | भारतभूषण अग्रवालफूटा प्रभात, फूटा विहानवह चल रश्मि के प्राण, विहग के गान, मधुर निर्भर के स्वरझर-झर, झर-झर।प्राची का अरुणाभ क्षितिज,मानो अंबर की सरसी मेंफ...

Rajdhani | Vishwanath Prasad Tiwari

राजधानी | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी इतना आतंक था मन परकि चौथाई तो मर चुका थाउतरने के पहले हीराजधानी के प्लेटफॉर्म परमेरा महानगर प्रवेशनववधू के गृह प्रवेश की तरह थामगर साथ...

Amaltaash | Anjana Varma

अमलताश / अंजना वर्मा (1)उठा लिया है भारइस भोले अमलताश नेदुनिया को रोशन करने काबिचारा दिन में भीजलाये बैठा है करोड़ों दीये! (2)न जाने किस स्त्री नेटाँग दिये अपने सोने क...

Peehar Ka Birwa | Amarnath Srivastava

पीहर का बिरवा / अमरनाथ श्रीवास्तवपीहर का बिरवाछतनार क्या हुआ,सोच रही लौटीससुराल से बुआ ।भाई-भाई फरीकपैरवी भतीजों की,मिलते हैं आस्तीनमोड़कर क़मीज़ों कीझगड़े में है महुआ...

Deewanon Ki Hasti | Bhagwati Charan Varma

दीवानों की हस्ती | भगवतीचरण वर्माहम दीवानों की क्या हस्ती,हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,मस्ती का आलम साथ चला,हम धूल उड़ाते जहाँ चले।आए बनकर उल्लास अभी,आँसू बनकर बह चले अभी,...

Saath Ka Hona | Madan Kashyap

साठ का होना | मदन कश्यपतीस साल अपने को सँभालने मेंऔर तीस साल दायित्वों को टालने में कटेइस तरह साठ का हुआ मैंआदमी के अलावा शायद ही कोई जिनावर इतना जीता होगाकद्दावर हाथी...

Atmalochan | Trilochan

आत्मालोचन | त्रिलोचनशब्द,मालूम है,व्यर्थ नहीं जाते हैंपहले मैं सोचता थाउत्तर यदि नहीं मिलेतो फिर क्या लिखा जाएकिंतु मेरे अंतरनिवासी ने मुझसे कहा—लिखा करतेरा आत्मविश्ले...

Main Koi Kavita Likh Raha Hunga | Kailash Manhar

मैं कोई कविता लिख रहा हूँगा | कैलाश मनहरमैं कोई कविता लिख रहा हूँगाजबसंसद में चल रही होगी बहसकि क्यों और कितना ज़रूरी हैबचाना कानून को ?कविता से, होने वाले खतरे परचिन्त...

Kahin Baarish Ho Chuki Hai | Zeeshan Sahil

कहीं बारिश हो चुकी है | ज़ीशान साहिलमकान और लोगबहुत ख़ुश और नए नज़र आ रहे हैंरास्ते और दरख़्तख़ुद को धुला हुआ महसूस कर रहे हैंदरख़्त: पेड़फूल और परिंदेतेज़ धूप में फैले ...

Pao Bhar Kaddu Se Bana Leti Hai Raita | Mamta Kalia

पाव भर कद्दू से बना लेती है रायता | ममता कालियाएक नदी की तरहसीख गई है घरेलू औरतदोनों हाथों में बर्तन थामचौकें से बैठक तक लपकनाजरा भी लड़खड़ाए बिनाएक साँस में वह चढ़ जा...

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