Aao, Chale Hum | Gyanendrapati
आओ, चलें हम - ज्ञानेन्द्रपति
आओ, चलें हम
आओ, चलें हम
साथ दो क़दम
हमक़दम हों
दो ही क़दम चाहे
दुनिया की क़दमताल से छिटक
हाथ कहाँ लगते हैं मित्रों के हाथ
घड़ी-दो घड़ी को
घड़ीदार हाथ -- जिनकी कलाई की नाड़ी से तेज़
धड़कती है घड़ी
वक़्त के ज़ख़्म से लहू रिसता ही रहता है लगातार
कहाँ चलते हैं हम क़दम-दो क़दम
उँगलियों में फँसा उँगलियाँ
उँगलियों में फँसी है डोर
सूत्रधार की नहीं
कठपुतलियों की
हथेलियों में फँसी है
एक बेलन
ज़िन्दगी को लोई की तरह बेलकर
रोटी बनाती
किनकी अबुझ क्षुधाएँ
उदरंभरि हमारी ज़िन्दगियाँ
भस्म कर रही हैं
भस्म कर रही हैं
बेमकसद बनाए दे रही हैं
खास मकसद से
आओ, विचारें हम
माथ से जोड़कर माथ
दो क़दम हमक़दम हों हाथ से जोड़े हाथ