Bewaqt Guzar Gaya Maali | Dr Sheoraj Singh Bechain

बेवक़्त गुज़र गया माली | डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन' 

टूटी डार झड़ी सब पत्तियाँ 
डाल भय लाचार 
विधाता कैसी विपदा डारी रे 
माँगत फूल, हवा और पानी 
ऋतु निर्मोही ने का ठानी 
काते कहें कौन दुख बाटें
कौन करे रखवाली 
बे वक्त गुज़र गया माली

किल्ला नए वक्त के मारे
आँधु लु ने निवल कर डाले
का खाएँ, का पिएँ बेचारे
कैसे कर के जीएँ बेचारे
नंगे सिर पर बरसी ज्वाला
घर आए कंगाली रे
बेवक़्त गुज़र गया माली

उठ गई पैंठ लदे व्यापारी
लुट गई, बिक गई रौनक़ सारी
शब्द से संदेश रह गए
खुद अपने दुख-दर्द मिटाना
खुद करना रखवाली रे
बेवक़्त गुज़र गया माली रे!
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