Bhaap | Shahanshah Alam
भाप | शहंशाह आलम
समुद्र की भाप होकर गया पानी
वापस लौट आता है
या जो रेत की भाप गई
लौट आई बारिश बनकर
शब्द की भाप गई
वह भी दिमाग़ को भेदती लौट आई
वह भी दिमाग़ को भेदती लौट आई
पछतावे की भाप गई
फिर जूते के तल्ले के आगे दबी आकर
भाप बनकर गया लड़की का ख़्वाब
अब नहीं लौटता चाहकर
दबे पाँव ख़्वाब जैसे लौट आता था
घोड़ी पर सवार लड़का बनकर
असर कम हो गया है माँ की दुआओं का
तभी हत्यारा अपनी भीड़ में पाकर मार डालता है
आग की भाप के बीच राँगे का लेप चढ़ाते क़लईगर को
भीड़ किसी तफ़तीश से पहले
सारे सबूत मिटा चुकी होती है
कई बार मैं जीना चाहता था जिस तरह पेड़ जीते हैं
ऑक्सीजन की भाप पूरी पृथ्वी पर फैलाते हुए मगर
जीने कहाँ दिया जाता है बूँदाबाँदी के बीच गाना गाते
भाप तक कहाँ थी औरत की देह पर एक जोड़ी के सिवा
जिसको नोचा-खसोटा गया अपनी मिल्कियत समझकर
क्या चाँद पर भी पानी
पत्थर से टकराकर भाप बनाता होगा
जैसे बना लेते हैं प्रेमी जोड़े
एक-दूसरे की साँसों से भाप
जहाँ पर युद्ध होता होगा लंबा
वहाँ पर शर्तिया भाप बनती होगी
टैंक से छोड़े गए गोला-बारूद की
गोला-बारूद से निकली हुई भाप
बर्बर होती होगी मेरे राजा की तरह
यह सच है एकदम सच है
जैसे कि भाप का बनना सच है
इन दरियाओं के बीच।