Billiyaan | Rajesh Joshi

बिल्लियाँ - राजेश जोशी 

मन के एक टुकड़े से चांद बनाया गया
और दूसरे से बिल्लियाँ

मन की ही तरह उनके भी हिस्से में आया भटकना
अव्वल तो वे पालतू बनती नहीं और बन जाएं
तो भरोसे के लायक नहीं होतीं
उनके पांव की आवाज़ नहीं होती
हरी चालाकी से बनाई गयीं उनकी आंखें
अंधेरे में चमकती हैं
चांद के भ्रम में वो भगोनी में रखा दूध पी जाती हैं

मन के एक हिस्से से चांद बनाया गया
और दूसरे से बिल्लियाँ
चांद के हिस्से में अमरता आई
और बिल्लियों के हिस्से में मृत्यु
इसलिए चांद से गप्प लड़ाते कवि का
उन्होंने अक्सर रास्ता काटा
इस तरह कविता में संशय का जन्म हुआ

वो अपने सद्य: जात बच्चे को अपने दांतों के बीच
इतने हौले से पकड़कर एक जगह से
दूसरी जगह ले जाती हैं

कवि को जैसे भाषा को बरतने का सूत्र
समझा रही हों।


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