Dangaiyon Ko Ghar Ki Samajjh Nahi Hoti | Deo Shankar Navin
दंगाइयों को घर की समझ नहीं होती | देवशंकर नवीन
‘दंगाइयों को घर की समझ नहीं होती’
दंगाई नहीं जानते घर का मतलब
जानते तो न जलाते
न उजाड़ते बस्तियाँ
कोई सच्चा मनुष्य तो
देख तक नहीं सकता
किसी घर का जलना, उजड़ना
क्योंकि घर अकेले नहीं उजड़ता
उसके साथ-साथ उजड़ते हैं
मनुष्य, मनुष्य के सपने, सपनों का परिवेश
घर में रहकर सपना देख लेने वाला मनुष्य
असल में कभी घर से बाहर ही नहीं होता
उस घर से उसका शरीर भर जाता है बाहर
शरीर के साथ बाहर जाकर भी
वह तथ्यत: घर में ही रहता है
इसीलिए इनसान बार-बार लौटता है घर
अपने घर, मगर दंगाई नहीं जानते घर का मतलब
क्योंकि वह घर में नहीं, अपने अंदर के घर में रहता है
जहाँ सपने और अनुराग नहीं
लहलहाते रहते हैं द्रोह और दंगों की फसल