Ehsaas Ka Ghar | Kanhaiya Lal Nandan

अहसास का घर -  कन्हैयालाल नंदन 
 
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
 
मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं,
उन दुआओं का मुझ पे असर चाहिए।
 
जिसमें रहकर सुकूं से गुज़ारा करूँ,
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
 
ज़िंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख़तसर चाहिए।
 
लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का समाँ मगर चाहिए।
 
जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए।
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