Genhui Kalaiyon Mein Kaamdani Chudiyan | Suryabala

गेहुंई कलाइयों में कामदानी चूड़ियाँ - सूर्यबाला
यादें भी अजीब हैं....
कभी लोरी बनती हैं
कभी घोडे की जीन।....
जरा ऐड़ लगाते ही
झालरदार इक्के के साथ
सरपट भागती हैं...
हिट-हिट, हुर्र-हुर्र, 
बड़ी, छोटी बहनें बैठीं-
खिल-खिल बतियाती हैं
गेहुईं कलाइयों में कामदानी चूड़ियां
फूलदार फ्रॉक और लाल पीले रिबनों में 
गूंजती मिठ बोलियां
अध फूटी सड़कों पर
खदराते पहिये
जंगल जलेबियां और
चिलबिल के भीटे..... 
पोखर शिवाले से
बावड़ी की सीडियों तक
चढती उतरती जब लौटती थीं बेटियां-
(तब उन्हें)
दूर से ही नजर आता था,
बाबूजी का चश्मा-
और मां के हाथों में थमी लालटेन!....
हां, यादें भी अजीब है-
सहेज कर रखती है
समय की पिटारी में
बाबू जी का चश्मा
और मां के हाथों में थमी लालटेन!....
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