Gujarat Nahin Tumhara Zila | Shashwat Upadhyay
गुजरात नहीं तुम्हारा जिला | शाश्वत उपाध्याय
दो अलग दुनिया के बीच
खटकती- झमकती (लगभग) उपस्थिति
कवि की तरफ से
कभी “वारी जावां” की लड़ाई लड़ती है
कभी ‘हासिल’ का चोंगा ओढ़ कर खुद पर इठलाने का बहाना ढूंढ़ती है
नशा और नशेमन को दोष देने
बढ़ते ही हैं पांव
कि चुप-चाप ‘जो हो रहा है, होने दो’ के भाव से
बीयर की घूंट के साथ पानी हुई जाती है हैसियत।
पुल गिरने से लेकर
सरकार गिरने तक
उसी शहर में माला-फूल-बलात्कार
उसी शहर में बिलकिस का तन
उसी शहर में हाथ हिलाते जनप्रतिनिधि
उसी शहर का मॉडल
जिसके छद्म में रचे बसे गए तुम, तुम्हारा बेटा, मेरा भी बेटा
एक मिनट
उसी शहर से तुम्हारा मतलब गुजरात से तो नहीं
न दोस्त
दिल्ली से दरभंगा
और सीकर से झुनझुनु
और खीरी से मुजफ्फरनगर
बलिया-बांका-बुलंदशहर और जोड़ो
उसी शहर का मतलब तुम्हारा देस है।
देस,
ताल्वय श नहीं दंत्य स
यहां श शुद्धता के मानक को पार कर गया है
लोक के लिए ललायित कवि,
देश से देस तक की दूरी
उस शहर ने बुलेट रेल की गति से नाप ली है।
तुम्हारा जिला भी तैयार बैठा है।
अब,
दो अलग दुनिया के बीच
झमकती- खटकती उपस्थिति लिए
बीयर की घूंट के साथ ‘जो हो रहा होने दो’ के भाव से
चाहो तो पानी हो जाओ
चाहो तो कवि।