Hidayatein | Babusha Kohli

हिदायतें | बाबुषा कोहली

उस आदमी से सहानुभूति रखना 
जो ख़राब कविताएँ लिखता है 
कविता, हर हाल में जिजीविषा का प्रतीक है 
इसे तुम इस तरह सोचना 
कि इस ख़तरनाक समय में कमस्कम वह जीना तो चाहता है 

उस आदमी पर मत हँसना 
जो दिशाओं को इतना ही जान पाया हो 
जितना कि मोबाइल स्क्रीन के चार कोने 
दरअसल, वह इस बात की संभावना है 
कि किसी ऐसे ग्रह में भी जीवन संभव है जहाँ पानी न हो 

उस आदमी को शुक्रिया कहना जिसने तुम्हें धक्का मार दिया था 
तुम औंधे मुँह गिर भी सकते थे 
लेकिन ज़मीन पर धप्प् से गिरने की बजाय 
साफ़ सुनाई देती है आसमान पर तुम्हारे पंखों की फड़फड़ाहट 

उसके पास अपना वक़्त ख़र्च करना जो तुम्हारा इंतज़ार करता हो 
एक दिन जान तुम जाओगे कि उसके अलावा 
इस धरती पर किसी को तुम्हारी ज़रूरत नहीं है 
चाहे कितने ही धब्बे क्यों न हों 
देह से भी पहले प्रेमी के सामने अपनी आत्मा निर्वस्त्र करना 
दुनिया को किसी बच्चे की नज़र से देखना 
आँखें केवल सोने के लिए मत मूँदना 
नदियों से एक संगीतकार की तरह मिलना 
बुद्धिजीवी सेना का सामना करने के पहले मौन का कवच पहन लेना 
बुद्धिमान के पास प्रश्नों के साथ जाना 
बुद्धू के पास प्यार लेकर जाना 
बुद्ध के पास नींद में चलते हुए जाना 
मृत्यु जब आए तो उसे जागते हुए मिलना 

भीड़ है बाज़ार में 
चमकीले जीवन का हर यंत्र उपलब्ध है 
चाक़ू है, चम्मच है, चाभी है 
चाँदी है, चंदन है, चादर है 
कितने ही रंगों के धागे हैं 
चोरी की चिंदी है 

कम्बख़्त! एक सुई नहीं मिलती 
जो आत्मा के मांस पर ठक्क्क्क से चुभ जाए 
अदृश्य के लहू का क़तरा है आँसू 
दुनिया-जहान में सूखा पड़ा है 

सुई गुम गई है 

सो आख़िरी हिदायत 
कोठरी में गुमी सुई को बाज़ार में मत ढूँढ़ना 
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