Hum Apna Beetna Dekhte Hain | Yash Malviya
हम अपना बीतना देखते हैं - यश मालवीय
कल पर उड़ती नज़र फेंकते हैं
हम अपना बीतना देखते हैं
अपने से ही अनबन मगर तक़ाज़े हैं
सपने खुले-खुले, जकड़े दरवाज़े हैं
चलते-चलते बीच रास्ते में
अपना ही रास्ता छेंकते हैं
सुबहों के कुहरे को झीना करने की
तारीख़ों को भीना-भीना करने की
जीते जाने की उम्मीदों की,
सँवलाई-सी धूप सेंकते हैं
गलियों-सड़कों की धुँधली पहचान लिए
अब तक लगी न ऐसी एक थकान लिए
थक जाने के डर ही से अक्सर
हाथ टेकते, पाँव टेकते हैं।