Kapas Ke Phool | Kedarnath Singh

कपास के फूल - केदारनाथ सिंह 

कपास के फूल
 वे देवता को पसंद नहीं 
लेकिन आश्चर्य इस पर नहीं 
आश्चर्य तो ये है कि कविगण भी 
लिखते नहीं कविता कपास के फूल पर
प्रेमीजन भेंट में देते नहीं उसे
कभी एक-दूसरे को 
जबकि वह है कि नंगा होने से
बचाता है सबको
और सुतर गया मौसम
तो भूख और प्यास से भी 
बचाता है वह

ईश्वर को तो ठण्ड लगती नहीं 
वैसे नंगा होना भी
वहाँ उतना ही सहज है
उतना ही दिव्य 
इसलिए इतना तय है कि ठंड के विरुद्ध 
आदमी ने ही खोजा होगा
पृथ्वी पर पहला कपास का फूल

पर पहला झिंगोला 
कब पहना उसने
पहले तागे से पहले सुई की
कब हुई थी भेंट 
यह भूल गई है हमारी भाषा
जैसे अपनी कमीज़ पहनकर
भूल जाते हैं हम
अपने दर्ज़ी का नाम

पर क्या कभी सोचा है आपने
वह जो आपकी कमीज़ है
किसी खेत में खिला
एक कपास का फूल है
जिसे पहन रखा है आपने

जब फ़ुर्सत मिले
तो कृपया एक बार इस पर सोचें ज़रूर
कि इस पूरी कहानी में सूत से सुई तक 
सब कुछ है
पर वह कहाँ गया 
जो इसका शीर्षक था।

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