Kate Haath | Ashok Chakradhar
कटे हाथ | अशोक चक्रधर
बगल में एक पोटली दबाए
एक सिपाही थाने में घुसा
और सहसा
थानेदार को सामने पाकर
सैल्यूट मारा
थानेदार ने पोटली की तरफ निहारा
सैल्यूट के झटके में पोटली भिंच गई
और उसमें से एक गाढी-सी कत्थई बूंद रिस गई
थानेदार ने पूछा:
'ये पोटली में से क्या टपक रहा है ?
क्या कहीं से शरबत की बोतलें
मारके आ रहा है ?
सिपाही हडबढाया , हुजूर इसमें शरबत नहीं है
शरबत नहीं है
तो घबराया क्यों है, हद है
शरबत नहीं है, तो क्या शहद है?
सिपाही कांपा, शर शहद भी नहीं है
इसमें से तो
कुछ और ही चीज बही है
और ही चीज, तो खून है क्?
अबे जल्दी बता
क्या किसी मुर्गे की गरदन मरोड़ दी
क्या किसी मेमने की टांग तोड़ दी
अगर ऐसा है तो बहुत अच्छा है
पकाएंगे
हम भी खाएंगे, तुझे भी खिलाएंगे!
सिपाही घिघियाया
सर! न पका सकता हूं, न खा सकता हूं
मैं तो बस आपको दिखा सकता हूं
इतना कहकर सिपाही ने मेज पर पोटली खोली
देखते ही, थानेदार की आत्मा भी डोली
पोटली से निकले
किसी नौजवान के दो कटे हुए हाथ
थानेदार ने पूछाए , बता क्या है बात
यह क्या कलेस है ?
सिपाही बोला, हुजूर!
रेलवे लाइन एक्सीडेंट का केस है
एक्सीडेंट का केस है।
तो यहां क्यों लाया है,
और बीस परसेंट बाडी ले आया है।
एट़टी परसेंट कहां छोड़ आया है।
सिपाही ने कहा, माई-बाप
यह बंदा इसलिए तो शर्मिंदा है
क्योंकि एट्टी परसेंट बाडी तो जिंदा है
पूरी लाश होती तो यहां क्यों लाता
वहीं उसका पंचनामा न बनाता
लेकिन गजब बहुत बड़ा हो गया
वह तो हाथ कटवा के खड़ा हो गया
रेल गुजर गई तो मैं दौडा
वह तो तना था मानिंदे हथौडा
मुझे देखकर मुसकराने लगा
और अपनी ठूंठ बाहों को
हिला-हिलाकर बताने लगा
ले जा, ले जा
ये फालतू हैं, बेकार हैं
और बुलरा ले कहां पत्रकार हैं ?
मैं उन्हें बताऊंगा कि काट दिए
इसलिए कि
मैंने झेला है भूख और गरीबी का
एक लंबा सिलसिला
पंद्रह वर्ष हो गए
इन हाथों को कोई काम ही नहीं मिला
हां, इसलिए-इसलिए
मैंने सोचा कि फालतू हैं
इन्हें काट दूं
और इस सोए हुए जनतंत्र के
आलसी पत्रकारों को
लिखने के लिए प्लाट दूं
प्लाट दूं कि इन कटे हाथों को
पंद्रह साल से
रोजी-रोटी की तलाश है
आदमी जिंदा है और
ये उसकी तलाश की लाश है।
इसे उठा ले
अरे, इन दोनों हाथों को उठा ले
कटवा के भी मैं तो जिंदा हूं
तू क्यो मर गया ?
हुजूर, इतना सुनकर मैं तो डर गया
जिन्न है या भूत
मैने किसी तरह अपने-आपको साधा
हाथों को झटके से उठाया
पोटली में बांधा
और यहां चला आया
हुजूर, अब मुझे न भेजें
और इन हाथों को भी
आप ही सहेजें।
थानेदार चकरा गया
शायद कटे हाथ देखकर घबरा गया
बोला, इन्हें मेडिकल कालेज ले जा,
लडके इन्हें देखकर डरेंगे नहीं
इनकी चीर-फाड़ करके स्टडी करेंगे।
इसके बाद पता नहीं क्या हुआ
लेकिन घटना ने मन को छुआ
अरे उस पढ़े लिखे नौजवान ने
अपने हाथों को खो दिया
और सच कहता हूं अखबार में
यह खबर पढ़कर मैं रो दिया।
सोचने लगाकि इसे पढ़कर
तथाकथित बडे लोग
शर्म से क्यों नही गड़ गए
देखिए, आज एक अकेले पेट के लिए
दो हाथ भी कम हो गए।
वह उकता गया झूठे वादों, झूठी बातों से,
वरना क्या नहीं कर सकता था
अपने हाथों से
वह इन हाथों से किसी मकान का
नक्शा बना सकता था
हाथों में बंदूक थामकर
देश को सुरक्षा दिला सकता था।
इन हाथों से वह कोई
सडक बना सकता था
और तो और
ब्लैक बोर्ड पर 'ह' से हाथ लिखकर
बच्चों को पढ़ा सकता था,
मैं सोचता हूं
इन्हीं हाथों से उसे बचपन में
तिमाही, छमाही, सालाना परीक्षाएं दी होंगी,
मां ने पास होने की दुआएं की होंगी।
इन्हीं हाथों से वह
प्रथम श्रेणी में पास होने की
खबर लाया होगा,
इन्हीं हाथों से उसने
खुशी का लड़डू खाया होगा।
इन्हीं हाथों में डिग्रियां सहेजी होंगी
इन्हीं हाथों से अर्जियां भेजी होंगी।
और अगर काम पा जाता
तो यह नपूता
इन्हीं हाथों से मां के पांव भी छूता
खुशी में इन हाथों से ढपली बजाता
और किसी खास रात को
इन्हीं हाथों से
दुलहन का घूंघट उठाता।
इन्हीं हाथों से झुनझुना बजाकर
बेटी को बहलाता
रोते हुए बेटे के गाल सहलाता
तूने तो काट लिए मेरे दोस्त
लेकिन तू कायर नहीं है
कायर तो तब होता
जब समूचा कट जाता
और देश के रास्ते से
हमेशा-हमेशा को हट जाता
सरदार भगत सिंह ने
यह बताने के लिए देश में गुलामी है
पर्चे बांटे
और तूने बेरोजगारी है
यह बताने के लिए हाथ काटे
बडी बात बोलने का तो
मुझमें दम नहीं है
लेकिन प्यारे, तू किसी शहीद से कम नहीं है।
बगल में एक पोटली दबाए
एक सिपाही थाने में घुसा
और सहसा
थानेदार को सामने पाकर
सैल्यूट मारा
थानेदार ने पोटली की तरफ निहारा
सैल्यूट के झटके में पोटली भिंच गई
और उसमें से एक गाढी-सी कत्थई बूंद रिस गई
थानेदार ने पूछा:
'ये पोटली में से क्या टपक रहा है ?
क्या कहीं से शरबत की बोतलें
मारके आ रहा है ?
सिपाही हडबढाया , हुजूर इसमें शरबत नहीं है
शरबत नहीं है
तो घबराया क्यों है, हद है
शरबत नहीं है, तो क्या शहद है?
सिपाही कांपा, शर शहद भी नहीं है
इसमें से तो
कुछ और ही चीज बही है
और ही चीज, तो खून है क्?
अबे जल्दी बता
क्या किसी मुर्गे की गरदन मरोड़ दी
क्या किसी मेमने की टांग तोड़ दी
अगर ऐसा है तो बहुत अच्छा है
पकाएंगे
हम भी खाएंगे, तुझे भी खिलाएंगे!
सिपाही घिघियाया
सर! न पका सकता हूं, न खा सकता हूं
मैं तो बस आपको दिखा सकता हूं
इतना कहकर सिपाही ने मेज पर पोटली खोली
देखते ही, थानेदार की आत्मा भी डोली
पोटली से निकले
किसी नौजवान के दो कटे हुए हाथ
थानेदार ने पूछाए , बता क्या है बात
यह क्या कलेस है ?
सिपाही बोला, हुजूर!
रेलवे लाइन एक्सीडेंट का केस है
एक्सीडेंट का केस है।
तो यहां क्यों लाया है,
और बीस परसेंट बाडी ले आया है।
एट़टी परसेंट कहां छोड़ आया है।
सिपाही ने कहा, माई-बाप
यह बंदा इसलिए तो शर्मिंदा है
क्योंकि एट्टी परसेंट बाडी तो जिंदा है
पूरी लाश होती तो यहां क्यों लाता
वहीं उसका पंचनामा न बनाता
लेकिन गजब बहुत बड़ा हो गया
वह तो हाथ कटवा के खड़ा हो गया
रेल गुजर गई तो मैं दौडा
वह तो तना था मानिंदे हथौडा
मुझे देखकर मुसकराने लगा
और अपनी ठूंठ बाहों को
हिला-हिलाकर बताने लगा
ले जा, ले जा
ये फालतू हैं, बेकार हैं
और बुलरा ले कहां पत्रकार हैं ?
मैं उन्हें बताऊंगा कि काट दिए
इसलिए कि
मैंने झेला है भूख और गरीबी का
एक लंबा सिलसिला
पंद्रह वर्ष हो गए
इन हाथों को कोई काम ही नहीं मिला
हां, इसलिए-इसलिए
मैंने सोचा कि फालतू हैं
इन्हें काट दूं
और इस सोए हुए जनतंत्र के
आलसी पत्रकारों को
लिखने के लिए प्लाट दूं
प्लाट दूं कि इन कटे हाथों को
पंद्रह साल से
रोजी-रोटी की तलाश है
आदमी जिंदा है और
ये उसकी तलाश की लाश है।
इसे उठा ले
अरे, इन दोनों हाथों को उठा ले
कटवा के भी मैं तो जिंदा हूं
तू क्यो मर गया ?
हुजूर, इतना सुनकर मैं तो डर गया
जिन्न है या भूत
मैने किसी तरह अपने-आपको साधा
हाथों को झटके से उठाया
पोटली में बांधा
और यहां चला आया
हुजूर, अब मुझे न भेजें
और इन हाथों को भी
आप ही सहेजें।
थानेदार चकरा गया
शायद कटे हाथ देखकर घबरा गया
बोला, इन्हें मेडिकल कालेज ले जा,
लडके इन्हें देखकर डरेंगे नहीं
इनकी चीर-फाड़ करके स्टडी करेंगे।
इसके बाद पता नहीं क्या हुआ
लेकिन घटना ने मन को छुआ
अरे उस पढ़े लिखे नौजवान ने
अपने हाथों को खो दिया
और सच कहता हूं अखबार में
यह खबर पढ़कर मैं रो दिया।
सोचने लगाकि इसे पढ़कर
तथाकथित बडे लोग
शर्म से क्यों नही गड़ गए
देखिए, आज एक अकेले पेट के लिए
दो हाथ भी कम हो गए।
वह उकता गया झूठे वादों, झूठी बातों से,
वरना क्या नहीं कर सकता था
अपने हाथों से
वह इन हाथों से किसी मकान का
नक्शा बना सकता था
हाथों में बंदूक थामकर
देश को सुरक्षा दिला सकता था।
इन हाथों से वह कोई
सडक बना सकता था
और तो और
ब्लैक बोर्ड पर 'ह' से हाथ लिखकर
बच्चों को पढ़ा सकता था,
मैं सोचता हूं
इन्हीं हाथों से उसे बचपन में
तिमाही, छमाही, सालाना परीक्षाएं दी होंगी,
मां ने पास होने की दुआएं की होंगी।
इन्हीं हाथों से वह
प्रथम श्रेणी में पास होने की
खबर लाया होगा,
इन्हीं हाथों से उसने
खुशी का लड़डू खाया होगा।
इन्हीं हाथों में डिग्रियां सहेजी होंगी
इन्हीं हाथों से अर्जियां भेजी होंगी।
और अगर काम पा जाता
तो यह नपूता
इन्हीं हाथों से मां के पांव भी छूता
खुशी में इन हाथों से ढपली बजाता
और किसी खास रात को
इन्हीं हाथों से
दुलहन का घूंघट उठाता।
इन्हीं हाथों से झुनझुना बजाकर
बेटी को बहलाता
रोते हुए बेटे के गाल सहलाता
तूने तो काट लिए मेरे दोस्त
लेकिन तू कायर नहीं है
कायर तो तब होता
जब समूचा कट जाता
और देश के रास्ते से
हमेशा-हमेशा को हट जाता
सरदार भगत सिंह ने
यह बताने के लिए देश में गुलामी है
पर्चे बांटे
और तूने बेरोजगारी है
यह बताने के लिए हाथ काटे
बडी बात बोलने का तो
मुझमें दम नहीं है
लेकिन प्यारे, तू किसी शहीद से कम नहीं है।