Kavi | Ramesh Chandra Shah
कवि - रमेश चंद्र शाह
वह रंकों का रंक मगर राजा होता है।
सन्नाटे का शोर नहीं, बाजा होता है
कवि का मन यह नहीं महज़ तुक
कवि का मन साझा होता है।
इसीलिए, इसीलिए हाँ, इसीलिए तो
इतना सारा कीच पचा कर भी दुनिया का
कवि का मन किस क़दर अरे ताला होता है।
वह रंकों का रंक मगर राजा होता है।
सन्नाटे का शोर नहीं, बाजा होता है
कवि का मन यह नहीं महज़ तुक
कवि का मन साझा होता है।
इसीलिए, इसीलिए हाँ, इसीलिए तो
इतना सारा कीच पचा कर भी दुनिया का
कवि का मन किस क़दर अरे ताला होता है।