Log Kehte Hain | Mamta Kalia

लोग कहते है | ममता कालिया

लोग कहते हैं
मैं अपना ग़ुस्सा कम करूँ
समझदार औरतों की तरह सहूँ और चुप रहूँ।
ग़ुस्सा कैसे कम किया जाता है?
क्या यह चाट के ऊपर पड़ने वाला मसाला है
या
रेडियो का बटन?
जिसे कभी भी कर दो ज़्यादा या कम।
यह तो मेरे अन्दर की आग है।
एक खौलता कढ़ाह, मेरा दिमाग़ है।
मैं एक दहका हुआ कोयला
जिस पर जिन्होंने ईंधन डाला है
और तेल,
फिर हवा भी की है,
उन्होंने ही उँगली ठोढ़ी पर टिका
चकित होने का चोचला भी किया है।
वे अच्छी तरह जानते हैं
कब, क्यों और कैसे
औरत एक अग्निकाण्ड बन जाती है
लेकिन खेलकूद के नाम पर
अब उन्हें यही क्रीड़ा भाती है।
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