Ma Ki Aankhen | Shrikant Verma

माँ की आँखें | श्रीकांत वर्मा 

मेरी माँ की डबडब आँखें 
मुझे देखती हैं यों 
जलती फ़सलें, कटती शाखें। 
मेरी माँ की किसान आँखें! 

मेरी माँ की खोई आँखें 
मुझे देखती हैं यों 
शाम गिरे नगरों को 
फैलाकर पाँखें। 

मेरी माँ की उदास आँखें।

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