Main Jungle Se Guzarta Hun To Lagta Hai | Gulzar

मैं जंगल से गुज़रता हूँ तो लगता है मेरे पुरखे खड़े हैं! | गुलज़ार

मैं जंगल से गुज़रता हूँ तो लगता है मेरे पुरखे खड़े हैं
मैं इक नौ ज़ाइदा बच्चा
ये पेड़ों के क़बीले
उठा के हाथ में मुझ को झुलाते हैं

कोई इक झुनझुना फूलों का हाथों से बजाता है 
कोई आँखों पे पुचकाता है खुशबुओं की पिचकारी 
बहुत बूढ़ा-सा दढ़ियल एक बरगद गोद में लेकर मुझे हैरान
होता है, सुनाता है

तुम अब चलने लगे हो!
हमारे जैसे थे तुम भी, जड़ें मिट्टी में रहती थीं 
बड़ी ताक़त लगाते थे तुम अपने बीज में सूरज पकड़ने की 
ज़मीं पर आए थे पहले
तुम्हें फिर रेंगते देखा...
हमारी शाख़ों पर चढ़ते थे, चढ़ के कूद जाते थे,
फुदकते थे
मगर दो पाँव पर जब तुम खड़े होकर के दौड़े, फिर नहीं लौटे 
पहाड़ों पत्थरों के हो गए तुम! 

मगर फिर भी... 
तुम्हारे तन में पानी है 
तुम्हारे तन में मिट्टी है
हमीं से हो…
हमीं में फिर से बोए जाओगे, तुम फिर से लौटोगे!

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