Namaskar 2064 | Anamika

नमस्कार, दो हजार चौंसठ - अनामिका

नमस्कार दो हजार चौंसठ! कैसे हो? इन दिनों कहां हो?

नमस्कार, पानी!

नमस्कार, पीपल के पत्तो, 
तुमको बरफ की शकल याद है न? 
दूर वहां उस पहाड़ की चोटी पर उसका घर था, 
कभी-कभी घाटी तक आती थी- मनिहारिन-सी अपनी टोकरी उठाए: दिन-भर कहानियां सुनाती थी परियों की! 
कैसे तुम भूल गए उसको? नमस्कार, नदियो! 
दुबली कितनी हो गई हो!
आंखों के नीचे पसर आए हैं साये! क्या स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता? स्वास्थ्य केन्द्र चल तो रहा है?
कैसा है पीपल का पेड़ और ढाबा? कई बरस पहले मुझे ट्रेन में एक लड़का मिला था, 
उसकी उन आंखों में इस पूरी दुनिया की बेहतरी का सपना था! 
क्या तुमने उसको कहीं देखा ? 
उसके ही नाम एक चिट्ठी है, 
एक शुभकामना सन्देश मंगल ग्रह का:

चाँद की मुहर उस पर है, 
आई है कोरियर से लेकिन पता है अधूरा,

मोबाइल नम्बर भी है आधा मिटा हुआ ! 
क्या मिट्टी कर लेगी इसको रिसीव उसकी तरफ से ?

आओ, अंगूठा लगाओ, मिट्टी रानी, नमस्कार!

अच्छा है- कम-से-कम तुम हो- पीछे-पीछे दूर तक मेरे-

उड़ती हुई !
Nayi Dhara Radio