Naye Kavi ka Dukh | Kedarnath Singh

नए कवि का दुख -  केदारनाथ सिंह

दुख हूँ मैं एक नए हिंदी कवि का
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छंद में?
ये छोटे-छोटे घर
ये बौने दरवाज़े
ताले ये इतने पुराने
और साँकल इतनी जर्जर
आसमान इतना ज़रा-सा
और हवा इतनी कम-कम
नफ़रत यह इतनी गुमसुम-सी
और प्यार यह इतना अकेला
और गोल-मोल
बाँधो
मुझे बाँधो
पर कहाँ बाँधोगे
किस लय, किस छंद में?
क्या जीवन इसी तरह बीतेगा
शब्दों से शब्दों तक
जीने
और जीने और जीने और जीने के
लगातार द्वंद में?
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