Pani Ko Kya Soojhi | Bhawani Prasad Mishra

पानी को क्या सूझी | भवानीप्रसाद मिश्र 

मैं उस दिन 
नदी के किनारे पर गया 
तो क्या जाने 
पानी को क्या सूझी 
पानी ने मुझे 
बूँद-बूँद पी लिया 
और मैं 
पिया जाकर पानी से 
उसकी तरंगों में 
नाचता रहा 
रात-भर 
लहरों के साथ-साथ 
बाँचता रहा!
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