Sach Choocha Hota Hai | Amitava Kumar
सच छूछा होता है।- अमिताव कुमार
महात्मा गाँधी की आत्मकथा में
मौसम का कहीं ज़िक्र नहीं,
लंदन की किसी ईमारत या
सड़क के बारे में कोई बयान नहीं,
किसी कमरे की, कभी एकत्रित भीड़ या
यातायात के किसी साधन की कहीं कोई
चर्चा नहीं–
यह वी. एस. नायपॉल की आलोचना है।
लेकिन मौसम तो गांधीजी के अंदर था!
तूफान से जूझती एक अडिग आत्मा–
नैतिकता की पतली पगडण्डी पर ठोकर खाता,
संभलता, रास्ता बनाता बढ़ता हुआ इन्सान!
अगर आप सच की खोज कर रहे हैं,
क्या फर्क पड़ता है कि
लेकिन नायपॉल की बात सर-आँखों पर!
अगर आप महात्मा नहीं
महज लेखक हैं,
आपको ध्यान देना होगा
नोट करना होगा,
अपने आसपास की दीवारों पर
खरोंचे गए प्रेमियों के नाम
छतों पर गिरती बारिश की बूंदों का अंतराल आंधी में झूमते पेड़ों की डालों का लचीलापन
साइकिल की घंटी की आवाज़
या फिर दंगे के बाद का सन्नाटा
लिखना होगा,
कैंटीन में चुपचाप बैठी युवती के बारे में
जिसके सामने रखे पानी के गिलास में
पूरी दुनिया उलटी दिखाई देती है।