Sadi Samvaad | Suryabala
सदी संवाद | सूर्यबाला
आधी सदी पहले-
वह मेरा छुटंका देवर
रसोई के दरवाजे पर डंका सा पीटता था-
कि उसे स्कूल की देरी हो रही है
और बाइस की मैं-
सहमी, सकपकाई-
चूल्हे से फूली गरम रोटियां निकाल
उसकी थाली में सरकाती थी
और फिर नल की धार में
भाप से जली अपनी उँगलियाँ
ठंडाती थी-
छज्जे से देखता मेरा पति,
मन ही मन आश्वस्त हो लेता था
कि यह स्त्री, उसका कुटुंब संभाल ली जा रही है
आधी सदी बाद -
खिचड़ाए बालों वाला वह मेरा अधेड़ देवर
अब मेरे पैरों को इस तरह छूता है कि-
उन्हें मंदिर की देहरी बना देता है ।....
और
जूते के तस्में बांधता मेरा पति
रूंधे गले से सोचता है-
‘यह भाई’ ‘इस स्त्री’ की संभाल कर ले जाएगा......
आधी सदी पहले-
वह मेरा छुटंका देवर
रसोई के दरवाजे पर डंका सा पीटता था-
कि उसे स्कूल की देरी हो रही है
और बाइस की मैं-
सहमी, सकपकाई-
चूल्हे से फूली गरम रोटियां निकाल
उसकी थाली में सरकाती थी
और फिर नल की धार में
भाप से जली अपनी उँगलियाँ
ठंडाती थी-
छज्जे से देखता मेरा पति,
मन ही मन आश्वस्त हो लेता था
कि यह स्त्री, उसका कुटुंब संभाल ली जा रही है
आधी सदी बाद -
खिचड़ाए बालों वाला वह मेरा अधेड़ देवर
अब मेरे पैरों को इस तरह छूता है कि-
उन्हें मंदिर की देहरी बना देता है ।....
और
जूते के तस्में बांधता मेरा पति
रूंधे गले से सोचता है-
‘यह भाई’ ‘इस स्त्री’ की संभाल कर ले जाएगा......