Shakkar Si Yaad | Suryabala
शक्कर सी याद - सूर्यबाला
धुली-धुली शक्कर सी याद-
तन-मन में रच रही मिठास।
आओ सब, बैठो मेरे पास
सुनो कहानी....
न राजा, न रानी....
न मोती, न माणिक
बस एक अधफूटे जीने
और उखड़े पलस्तर वाले घर की-
अधफूटी मुंडेरों से
सर्र-सर्र उड़ती पतंगों की-फर-फर पतंगें,
जैसी मेरी पंचरंग चुनर....
मां ने रंगवाई, जतन से पहनाई।
हल्दी-दूब, धान-पान
कुमकुम से भरी मांग
कैसी तो जगर-मगर
टोने-टोटके और काजल के टीके से सँवर-
देख लो,
तब से अब तक
जस की तस....
देहरी से पनघट
और खेत खलिहान तक
मिठबोलियों की लहलहाती फसल....
क्या कहते हो राहगीर?
कहाँ चलते हैं छुरे-गंडासे?
कहाँ फूटते हैं बम!!
किस देस? किस नगर? किस डगर?
वह न होगा हमारा घर, हमारा शहर-
हमारे पास तो सिर्फ मुट्ठी भर अबीर
अनार, फुलझड़ियाँ, बस!
लेकिन रुको!
तुम जाना क्यों चाहते हो उस देस? उस डगर?
मेरी मानो, मत जाओ....
रुक जाओ-
यहीं हमारे घर.......
नहीं, छोटा नहीं पड़ेगा यह
क्योंकि आज तक कभी पड़ा ही नहीं।
कभी कोई उदास लौटा नहीं-
ऐसा है यह घर, ये नगर, ये दर-
खाने पीने को भी इफरात है-
मक्की जई, गुड़ अचार
लइया चना दही भात-
अजीब देश है भइया यह
यहां खुशियां पतंगों की तरह
दस बीस पैसों में खरीदी जाती हैं-
और छरहरे आसमान में-
जीभर कर उड़ाई जाती हैं-
और तो और-
दो-चार कट भी गईं तो-
लूट-लूट कर दुछत्ती में रख ली जाती हैं।
खुशियाँ...खुशियाँ...खुशियाँ
धुली-धुली शक्कर सी याद-
तन-मन में रच रही मिठास।
आओ सब, बैठो मेरे पास
सुनो कहानी....
न राजा, न रानी....
न मोती, न माणिक
बस एक अधफूटे जीने
और उखड़े पलस्तर वाले घर की-
अधफूटी मुंडेरों से
सर्र-सर्र उड़ती पतंगों की-फर-फर पतंगें,
जैसी मेरी पंचरंग चुनर....
मां ने रंगवाई, जतन से पहनाई।
हल्दी-दूब, धान-पान
कुमकुम से भरी मांग
कैसी तो जगर-मगर
टोने-टोटके और काजल के टीके से सँवर-
देख लो,
तब से अब तक
जस की तस....
देहरी से पनघट
और खेत खलिहान तक
मिठबोलियों की लहलहाती फसल....
क्या कहते हो राहगीर?
कहाँ चलते हैं छुरे-गंडासे?
कहाँ फूटते हैं बम!!
किस देस? किस नगर? किस डगर?
वह न होगा हमारा घर, हमारा शहर-
हमारे पास तो सिर्फ मुट्ठी भर अबीर
अनार, फुलझड़ियाँ, बस!
लेकिन रुको!
तुम जाना क्यों चाहते हो उस देस? उस डगर?
मेरी मानो, मत जाओ....
रुक जाओ-
यहीं हमारे घर.......
नहीं, छोटा नहीं पड़ेगा यह
क्योंकि आज तक कभी पड़ा ही नहीं।
कभी कोई उदास लौटा नहीं-
ऐसा है यह घर, ये नगर, ये दर-
खाने पीने को भी इफरात है-
मक्की जई, गुड़ अचार
लइया चना दही भात-
अजीब देश है भइया यह
यहां खुशियां पतंगों की तरह
दस बीस पैसों में खरीदी जाती हैं-
और छरहरे आसमान में-
जीभर कर उड़ाई जाती हैं-
और तो और-
दो-चार कट भी गईं तो-
लूट-लूट कर दुछत्ती में रख ली जाती हैं।
खुशियाँ...खुशियाँ...खुशियाँ