Wah Lete Hain Pratishodh | Nandkishore Acharya

वे लेते हुए प्रतिशोध– नंदकिशोर आचार्य 
 
शब्द मेरे मुखौटे हैं जिनमें अपने को छुपाता हूँ मैं
अपनी लिप्सा, महत्वाकांक्षा, मक्कारी, फ़रेब और घृणा, भय अब
कितनी मदद की है शब्दों ने मेरी
उनका धन्यवाद करता जब अपनी ओर मुड़ता हूँ
पाता हूँ बस खोखल, जिसको छुपाता ख़ुद मुखौटा बन गया हूँ मैं
बेचारे नहीं होते शब्द, वे लेते हैं प्रतिशोध
शब्दों को जैसा बरतते हो तुम, वे तुमको वैसा बरतते नहीं!
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