Aman Ka Naya Silsila Chahta Hun | Lakshmi Shankar Vajpeyi
अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
अमन का नया सिलसिला चाहता हूँ
जो सबका हो ऐसा ख़ुदा चाहता हूँ।
जो बीमार माहौल को ताज़गी दे
वतन के लिए वो हवा चाहता हूँ।
कहा उसने धत इस निराली अदा से
मैं दोहराना फिर वो ख़ता चाहता हूँ।
तू सचमुच ख़ुदा है तो फिर क्या बताना
तुझे सब पता है मैं क्या चाहता हूँ।
मुझे ग़म ही बांटे मुक़द्दर ने लेकिन
मैं सबको ख़ुशी बांटना चाहता हूँ।
बहुत हो चुका छुप के डर डर के जीना
सितमगर से अब सामना चाहता हूँ।
किसी को भंवर में न ले जाने पाए
मैं दरिया का रुख़ मोड़ना चाहता हूँ।