Ambapali | Vishwanath Prasad Tiwari

अम्बपाली | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

मंजरियों से भूषित
यह सघन सुरोपित आम्र कानन
सत्य नहीं है, अम्बपाली !
-यही कहा तथागत ने
झड़ जाएँगी तोते के पंख जैसी पत्तियाँ
दूँठ हो जाएँगी भुजाएँ
कोई सम्मोहन नहीं रह जाएगा
पक्षियों के लिए
इस आम्रकुंज में
-यही कहा तथागत ने
दर्पण से पूछती है अम्बपाली
अपने भास्वर, सुरुचिर मणि जैसे नेत्रों से पूछती है
पूछती है भ्रमरवर्णी, स्निग्ध, कुंचित केशों से
तूलिका अंकित भौंहों से पूछती है
पुष्पवासित रत्नभूषित त्वचा से
होंठों की कांपती कामनाओं से
देह के स्फुलिंगों से पूछती है
अम्बपाली
क्या अन्यथा नहीं हो सकते
सत्यवादी बुद्ध के वचन?

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