Apne Prem Ke Udveg Mein | Agyeya
अपने प्रेम के उद्वेग में | अज्ञेय
अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है।
तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है।
तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जीवन में मुझसे अन्य किसी पात्र के साथ हो चुका है!
यह प्रेम एकाएक कैसा खोखला और निरर्थक हो जाता है!
अपने प्रेम के उद्वेग में मैं जो कुछ भी तुमसे कहता हूँ, वह सब पहले कहा जा चुका है।
तुम्हारे प्रति मैं जो कुछ भी प्रणय-व्यवहार करता हूँ, वह सब भी पहले हो चुका है।
तुम्हारे और मेरे बीच में जो कुछ भी घटित होता है उससे एक तीक्ष्ण वेदना-भरी अनुभूति मात्र होती है—कि यह सब पुराना है, बीत चुका है, कि यह अभिनय तुम्हारे ही जीवन में मुझसे अन्य किसी पात्र के साथ हो चुका है!
यह प्रेम एकाएक कैसा खोखला और निरर्थक हो जाता है!