Baarish Ki Bhasha | Shahanshah Alam

बारिश की भाषा | शहंशाह आलम 

उसकी देह कितनी बातूनी लग रही है
जो बारिश से बचने की ख़ातिर खड़ी है
जामुन पेड़ के नीचे जामुनी रंग के कपड़े में
‘जामुन ख़रीदकर घर लाए कितने दिन हुए’
हज़ारों मील तक बरस रही बारिश के बीच
वह लड़की क्या ऐसा सोच रही होगी
या यह कि इस शून्यता में जामुन का पेड़
बारिश से उसको कितनी देर बचा पाएगा
बारिश किसी नाव की तरह
बाँधी नहीं जा सकती, यह सच है
जामुन का पककर गिरना भी
बाँधा नहीं जा सकता
बारिश को रुकना होता है तो ख़ुद रुक जाती है
बरसना होता है तो ख़ुद बरसने लगती है घनघोर
तभी बारिश है लड़की है जामुन का पेड़ है 
तभी बारिश की भाषा है मेरे कानों तक सुनाई देती।
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