Bachana | Rajesh Joshi

बचाना | राजेश जोशी

एक औरत हथेलियों की ओट में
दीये की काँपती लौ को बुझने से बचा रही है
एक बहुत बूढ़ी औरत कमज़ोर आवाज़ में गुनगुनाते हुए
अपनी छोटी बहू को अपनी माँ से सुना गीत
सुना रही है
एक बच्चा पानी में गिर पड़े चींटे को
एक हरी पत्ती पर उठाने की कोशिश कर रहा है
एक आदमी एलबम में अपने परिजनों के फोटो लगाते हुए
अपने बेटे को उसके दादा दादी और नाना नानी के
किस्से सुना रहा है
बची है यह दुनिया
कि कोई न कोई, कहीं न कहीं बचा रहा है हर पल
कुछ न कुछ जो ज़रूरी है
अभी अभी कुछ लोगों ने उन किताबों को ढूँढ निकाला है
जिनमें इस शहर की पुरानी इमारतों के प्लास्टर को
तैयार करने की विधियाँ दर्ज थीं
अब खिरनी वाले मैदान की ढहती जा रही पुरानी इमारतों की
मरम्मत की जा रही है पुराने सलीक़े से।

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