Barson Ke Baad | Girija Kumar Mathur

बरसों के बाद | गिरिजा कुमार माथुर 

बरसों के बाद कभी
हम-तुम यदि मिलें कहीं
देखें कुछ परिचित-से
लेकिन पहिचाने ना।
याद भी न आये नाम
रूप, रंग, काम, धाम
सोचें यह संभव है
पर, मन में माने ना।
हो न याद, एक बार
आया तूफान ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को
पढ़ने की ठाने ना।
बातें जो साथ हुई
बातों के साथ गई
आँखें जो मिली रहीं
उनको भी जानें ना।
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