बाज़ार | अनामिका

सुख ढूँढ़ा, 
गैया के पीछे बछड़े जैसा 
दुःख चला आया! 
जीवन के साथ बँधी 
मृत्यु चली आई! 
दिन के पीछे डोलती आई 
रात बाल खोले हुई। 
प्रेम के पीछे चली आई 
दाँत पीसती कछमछाहट! 
‘बाई वन गेट वन फ़्री!' 
लेकिन अतिरेकों के बीच कहीं 
कुछ तो था 
जो जस का तस रह गया 
लिए लुकाठी हाथ- 
डफ़ली बजाता हुआ 
और मगन गाता हुआ-
‘मन लागो मेरो यार फ़क़ीरी में! 

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