Bhool Bhulaiyya | Shraddha Upadhyay

 भूल-भूलैया | श्रद्धा उपाध्याय

हम सबसे पहले मिलेंगे दिल्ली में घुमते बेमक़सद क़दमों में 
सड़कें तुम्हें घर ले जाएँगी 
और मुझे भूल-भूलैया में 
मैं किताबें खरीदूँगी कोई उन्हें पढ़ेगा 
मैं अपना कॉफ़ी मग अपने घर के नजदीकी पार्क में रोप दूँगी 
फिर कुछ दिन मैं उस बाग़ में रहूंगी
 जब वापस आऊँगी तो सोफ़े पर समेट लूँगी 
तीन कविताएँ पाँच कहानियाँ 
और साथ में मैं दो बार प्रेम में पडूँगी 
और छः बार निकस जाऊँगी 
ख़ून की जाँच करवाउँगी की एड़ियों की कठोरता का सबब मिले 
रसोई में जाऊँगी और एड़ियों पर खड़े होकर आराम पका लूँगी 
मैंने अपनी एड़ियां नानी से पाई हैं 
और घुटने दादी से 
मैं चलती हूँ तो माँ के बारे में सोचती हूँ 
माँ ने अपनी चाय का कप घर में बोया 
वो किताबें नहीं ख़रीदतीं 
कभी कभी किताबें पढ़ती हैं लेकिन उनके घर से सड़कें नहीं निकलतीं 
वो मन्नत का धागा बाँधती हैं दरवाज़ों पर
 वो धागा मुझे भूल भूलैया से खींच लेगा

Nayi Dhara Radio