Capitalism | Gaurav Tiwari
कैपिटलिज़्म | गौरव तिवारी
बाग में अक्सर नहीं तोड़े जाते गुलाब
लोग या तो पसंद करते हैं उसकी ख़ुशबू
या फिर डरते हैं उसमें लगे काँटों से
जो तोड़ने पर कर सकते हैं
उन्हें ज़ख्मी
वहीं दूसरी तरफ़ घास
कुचली जाती है, रगड़ी जाती है,
कर दी जाती है अपनी जड़ों से अलग
सहती हैं अनेक प्रकार की प्रताड़नाएं
फिर भी रहती हैं बाग में,
क्योंकि बाग भी नहीं होता बाग
घास के बगैर
माली भी रखता है
थोड़ा-बहुत ध्यान
घास का,
ताकि बढ़ सके गुलाब की सुंदरता
कुछ और
यदि घास भी
पैदा नहीं करेंगी ख़ुशबू
या नहीं बनेंगी कँटीली
वे होती रहेंगी शोषित
और गुलाब बना रहेगा कैपिटलिस्ट।