Dahi Jamane Ko Thoda Sa Jaman Dena | Yash Malviya

दही जमाने को, थोड़ा-सा जामन देना | यश मालवीय

मन अनमन है, पल भर को 
अपना मन देना 
दही जमाने को, थोड़ा-सा 
जामन देना 
सिर्फ़ तुम्हारे छू लेने से 
चाय, चाय हो जाती 
धूप छलकती दूध सरीखी 
सुबह गाय हो जाती 
उमस बढ़ी है, अगर हो सके 
सावन देना 
दही जमाने को, थोड़ा-सा 
जामन देना 
नहीं बाँटते इस देहरी 
उस देहरी बैना 
तोता भी उदास, मन मारे 
बैठी मैना 
घर से ग़ायब होता जाता, 
आँगन देना 
दही जमाने को, थोड़ा-सा 
जामन देना
अलग-अलग रहने की 
ये कैसी मजबूरी 
बहुत दिन हुए, आओ चलो 
कुतर लें दूरी 
आ जाना कुछ पास, 
ज़रा-सा जीवन देना। 
दही जमाने को, थोड़ा-सा 
जामन देना 
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