Daro | Ghanshyam Kumar Devansh
डरो | घनश्याम कुमार देवांश
डरो
लेकिन ईश्वर से नहीं
एक हारे हुए मनुष्य से
सूर्य से नहीं
आकाश की नदी में पड़े मृत चंद्रमा से
भारी व वज्र कठोर शब्दों से नहीं
उनसे जो कोमल हैं और रात के तीसरे पहर
धीमी आवाज़ में गाए जाते हैं
डरो
धार और नोक से नहीं
एक नरम घास के मैदान की विशालता
और हरियाली से
साम्राज्य के विराट ललाट से नहीं
एक वृद्ध की नम निष्कंप आँखों से