Dopahar Ki Kahaniyon Ke Mama | Rajesh Joshi
दोपहर की कहानियों के मामा | राजेश जोशी
हम उन नटखट बच्चियों के मामा थे
जो अकसर दोपहर में अपनी नानियों से कहानी सुनने की ज़िद करती थी
हम हमेशा ही घर लौटने के रास्ते भूल जाते थे
घर के एकदम पास पहुँचकर मुड़ जाते थे
किसी अपरिचित गली में
अकेले होने से हमें डर लगता था
और लोगों के बीच अचानक ही हम अकेले हो जाते थे
अर्जियों के साथ हमारा जो जीवन चरित नत्थी था
उसमें हमारे अनुभवों के लिए कोई जगह नहीं थी
उसमें चाय की दुकानों और सिगरेट की गुमटियों के
हमारे उधार खातों का जिक्र नहीं था
उसमें हमारे रतजगों और आवारगी का कोई किस्सा नहीं था
कई पेड़ों, खंडहरों और चट्टानों पर लिख आए थे हम अपने नाम
प्रेमिकाओं को अकसर हम जीवन से जाते हुए देखते थे
मोची हमारी चप्पलों को देखकर पहले मुस्कुराते थे
फिर नए थेगले लगाने से इनकार कर देते थे
हम अपनी खाली जेबों में डाले रहते थे अपने खाली हाथ
एक खालीपन को दूसरे खालीपन से भरते हुए
हमें लेकिन एक हुनर में महारत हासिल थी
हम बहुत सफाई से अपनी हँंसी में अपने आँसू छिपा लेते थे।
हम उन नटखट बच्चियों के मामा थे
जो अकसर दोपहर में अपनी नानियों से कहानी सुनने की ज़िद करती थी
हम हमेशा ही घर लौटने के रास्ते भूल जाते थे
घर के एकदम पास पहुँचकर मुड़ जाते थे
किसी अपरिचित गली में
अकेले होने से हमें डर लगता था
और लोगों के बीच अचानक ही हम अकेले हो जाते थे
अर्जियों के साथ हमारा जो जीवन चरित नत्थी था
उसमें हमारे अनुभवों के लिए कोई जगह नहीं थी
उसमें चाय की दुकानों और सिगरेट की गुमटियों के
हमारे उधार खातों का जिक्र नहीं था
उसमें हमारे रतजगों और आवारगी का कोई किस्सा नहीं था
कई पेड़ों, खंडहरों और चट्टानों पर लिख आए थे हम अपने नाम
प्रेमिकाओं को अकसर हम जीवन से जाते हुए देखते थे
मोची हमारी चप्पलों को देखकर पहले मुस्कुराते थे
फिर नए थेगले लगाने से इनकार कर देते थे
हम अपनी खाली जेबों में डाले रहते थे अपने खाली हाथ
एक खालीपन को दूसरे खालीपन से भरते हुए
हमें लेकिन एक हुनर में महारत हासिल थी
हम बहुत सफाई से अपनी हँंसी में अपने आँसू छिपा लेते थे।