Ek Aadmi Do Pahadon Ko Kuhniyon Se Thelta | Shamsher Bahadur Singh

एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता | शमशेर बहादुर सिंह

एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता
पूरब से पच्छिम को एक क़दम से नापता
बढ़ रहा है

कितनी ऊँची घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को हैं
जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है

अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ
फिर क्यों

दो बादलों के तार
उसे महज़ उलझा रहे हैं?

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