Ek Baar Jo | Ashok Vajpeyi

एक बार जो | अशोक वाजपेयी 

एक बार जो ढल जाएँगे
शायद ही फिर खिल पाएँगे।
फूल शब्द या प्रेम
पंख स्वप्न या याद
जीवन से जब छूट गए तो
फिर न वापस आएँगे।
अभी बचाने या सहेजने का अवसर है
अभी बैठकर साथ
गीत गाने का क्षण है।
अभी मृत्यु से दाँव लगाकर
समय जीत जाने का क्षण है।
कुम्हलाने के बाद
झुलसकर ढह जाने के बाद
फिर बैठ पछताएँगे।
एक बार जो ढल जाएँगे
शायद ही फिर खिल पाएँगे।

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