Gar Humne Dil Sanam Ko Diya | Nazeer Akbarabadi

गर हम ने दिल सनम को दिया | नज़ीर अकबराबादी

गर हम ने दिल सनम को दिया फिर किसी को क्या

इस्लाम छोड़ कुफ़्र लिया फिर किसी को क्या

क्या जाने किस के ग़म में हैं आँखें हमारी लाल

ऐ हम ने गो नशा भी पिया फिर किसी को क्या

आफी किया है अपने गिरेबाँ को हम ने चाक

आफी सिया सिया न सिया फिर किसी को क्या

उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में

रुस्वा किया ख़राब किया फिर किसी को क्या

दुनिया में आ के हम से बुरा या भला 'नज़ीर'

जो कुछ कि हो सका सो किया फिर किसी को क्या

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