Gun Gaunga | Arun Kamal
गुन गाऊँगा | अरुण कमल
गुन गाऊँगा
फाग के फगुआ के चैत के पहले दिन के गुन गाऊँगा
गुड़ के लाल पुओं और चाशनी में इतराते मालपुओं के
गुन गाऊँगा
दही में तृप्त उड़द बड़ों
और भुने जीरों
रोमहास से पुलकित कटहल और गुदाज़ बैंगन के
गुन गाऊँगा
होली में घर लौटते
जन मजूर परिवारों के गुन
भाँग की सांद्र पत्तियों और मगही पान के नर्म पत्तों
सरौतों सुपारियों के
गुन गाऊँगा
जन्मजन्मांतर मैं वसंत के धरती के
गुन गाऊँगा—
आओ वसंतसेना आओ मेरे वक्ष को बेधो
आज रात सारे शास्त्र समर्पित करता
मैं महुए की सुनसान टाप के
गुन गाऊँगा
इसी ठाँव मैं सदा सर्वदा
गुन गाऊँगा
सदा आनंद रहे यही द्वारे