Ilahabad | Satyam Tiwari | Satyam Tiwari

इलाहबाद | सत्यम तिवारी 

तय तो यही हुआ था 
घोर असहमति के साथ जब भी वर्षा होगी
 हम यात्रा पर निकलेंगे 
असबाब उतना ही रहेगा 
जितना एक नाव पर सिमट आए 
भटकाव की सहूलत मिलेगी 
और निरपराध की भावना 
फिर भी कैसे तुमने मेरे रेतीले अस्तित्व को पग पग पर भास्काया 
जैसे रेत से घर नहीं बन सकता
 जैसे हम चाहते भी तो उसमें रह नहीं पाते 
तब से लेकर अब तक न जाने कितनी बरसातें बीतीं 
इलाहबाद डूबता रहा आकंठ
 और सिर्फ़ नूह का जहाज़ बचता रहा दुबारा 
तुम्हें मैंने कोसने के क्रम में ढूँढा
 तुम्हें नहीं पाता तो किसके आगे पटकता थाली 
हाथ नहीं फैलाता तो कैसे दिखलाता 
कि पीने के लिए पानी नहीं है 
खाने के लिए सत्तू करने के लिए याद  

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