Isiliye | Gagan Gill
इसीलिए | गगन गिल
वह नहीं होगा कभी भी
फाँसी पर झूलता हुआ आदमी
वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए
सोचता था वह
गर्दन के पीछे हो रही सुरसुरी को वह
मुल्तवी करता रहता था
तमाम ख़बरों के बावजूद
सोचता था
अपने लिए एक बिलकुल अलग अंत
इसीलिए जब अंत आया
तो अलग तरह से नहीं आया