Jantar Mantar | Arunabh Saurabh
जंतर-मंतर | अरुणाभ सौरभ
लाल - दीवारों
और झरोखे पर
सरसराते दिन में
सीढ़ी-सीढ़ी नाप रहे हो
जंतर-मतर पर
बोल कबूतर
मैंना बोली फुदक-फुदककर
बड़ी जालिम है।
जंतर-मंतर
मॉँगन से कछू मिले ना हियाँ
बताओ किधर चले मियाँ
पूछ उठाकर भगी गिलहरी
कौवा बोला काँव - काँव
लोट चलो अब अपने गाँव
टिट्ही बोलीं टीं.टीं.
राजा मंत्री छी...छी
घर - घर माँग रहे वोट
और नए- पुराने नोट
झरोखे से झाँके
इतिहास का कोना
जीना चढ़ि ऊँचे हुए
चाँदी और सोना
सूरज डूबन को तैयार
ताड पेड़ के दक्खिन पार
पंछी नाचे अपनी ताल
जनता बनी विक्रम बैताल
झाँक लेना
लाल झरोरवा
बोल देना गज़ब अनोखा
बच्चे फांदे बने अनजान
धरने पर बैठे पहलवान..