Jharber | Kedarnath Singh

झरबेर | केदारनाथ सिंह 

प्रचंड धूप में
इतने दिनों बाद 
(कितने दिनों बाद)
मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे 
कँटीली झाड़ियों पर
पीले-पीले फल
’झरबेर हैं’- मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा
और कहीं गहरे
एक बहुत पुराने काँटे ने
फिर मुझे छेदा
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