Ladki Ne Darna Chhor Diya | Sheoraj Singh 'Bechain'

लड़की ने डरना छोड़ दिया | डॉ श्यौराज सिंह बेचैन

लड़की ने डरना छोड़ दिया
अक्षर के जादू ने
उस पर असर बड़ा बेजोड़ किया,
चुप्पा रहना छोड़
दिया, लड़की ने डरना छोड़ दिया।
हंसकर पाना सीख लिया,
रोना-पछताना छोड़ दिया।
बाप को बोझ नहीं
होगी वह, नहीं पराया धन होगी
लड़के से क्यों-
कम होगी, वो उपयोगी
जीवन होगी।
निर्भरता को
छोड़ेगी, जेहनी जड़ता को तोड़ेगी
समता मूल्य
जियेगी अब वो
एकतरफा क्यों ओढ़ेगी।
जल्दी नहीं करेगी शादी
देर से 'मां' पद पायेगी।
नाजुक क्यों,
फौलाद बनेगी,
दम-खम काम में लायेगी।
ना दहेज को-
सहमत होगी, कौम की कारा तोडेगी
घुट-युटकर
अब नहीं मरेगी,
मंच पै चढ़कर बोलेगी।
समय और शिक्षा -
ने उसके चिंतन का रुख
मोड़ दिया।
चुप्पा रहना छोड़
दिया, लड़की ने डरना छोड़ दिया।
दूर-दूर से चुग्णा-
लाकर नीड़ में चिड़िया खाती है।
लेकिन लड़की पल-
कर बढ़कर, शादी कर
उड़ जाती है।
लड़की सेवा करे
बुढ़ापे में तो क्यों लड़का चाहें ?
इसी प्रश्न के
समाधान ने भीतर तक झकझोर दिया
चुप्पा रहना छोड़-
दिया, लड़की ने डरना छोड़ दिया।

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