Machli Boli Kavi Se | K Sachidanandan | Girdhar Rathi

मछली बोली कवि से |  के. सच्चिदानंदन
अनुवाद : गिरधर राठी

  उपमा मुझे मत दो स्त्री की आँख की
स्त्री हूँ मैं स्वयं, पूरी, संपूर्ण

मुझे नहीं धरना है भेष जलपरियों का
मैं नहीं ढोऊँगी नारी का भारी सिर

मुझसे अँगूठी निगलवा कर
करा नहीं पाओगे मछुए का इंतज़ार

मैं नहीं कोई अवतार
जो लाए वेद को उबार।

वापस पहुँचा दो मुझे जल में तुम
कच्चा ही,

तड़पना पड़े न मुझे रेत में
बनकर प्रतीक या

फिर कोई रूपक।


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