Mujhe Sneh Kya Mil Na Sakega? | Suryakant Tripathi Nirala

मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा?

स्तब्ध, दग्ध मेरे मरु का तरु
क्या करुणाकर खिल न सकेगा?

जग के दूषित बीज नष्ट कर,
पुलक-स्पंद भर, खिला स्पष्टतर,

कृपा-समीरण बहने पर, क्या
कठिन हृदय यह हिल न सकेगा?

मेरे दु:ख का भार, झुक रहा,
इसीलिए प्रति चरण रुक रहा,

स्पर्श तुम्हारा मिलने पर, क्या
महाभार यह झिल न सकेगा?

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