Nayi Bhookh | Hemant Deolekar
नई भूख | हेमंत देवलेकर
भूख से तड़पते हुए भी
आदमी रोटी नहीं मांगता
वह चिल्लाता है 'गति...गति!!
तेज़...और तेज़...
इससे तेज़ क्यों नहीं'
कभी न स्थगित होने वाली वासना है गति
हमारे पास डाकिये की कोई स्मृति नहीं बची।
दुनिया के किसी भी कोने में
पलक झपकते पहुँच रहा है सब कुछ
सारी आधुनिकता इस वक़्त लगी है
समय बचाने में -
जो स्वयं ब्लैक होल है।
हो सकता है किसी रोज़
हम बना लें समय भी
मगर क्या तब भी
होगा हमारे पास इतना समय भी कि
किसी उल्टे पड़े छटपटाते कीड़े को सीधा कर सकें ।