Nritya | Nidhi Sharma
नृत्य - निधि शर्मा
मैं नाचती हूं, अपने दुखों के गीत पर।
मैं मुस्कुराती हूं जब तुम मुझे छोड़ कर चले जाते हो।
मेरे रोम रोम में बजता है विरह का संगीत।
और उसमे रस घोलती है मेरे प्राणों की बांसुरी।
हर दफा हर दुख के पश्चात् मैं जन्म लेती हृ।
पहले से कुछ अलग, पहले से कोमल हृदय और मजबूत भावनाओं के साथ।
दुःख के प्रत्येक क्षण को संजो लेती हूं अपने बालों के जूड़े में
आंसुओं के मोती टांक देती हूं अपने आंचल में।
और छिपा कर रख देती हूं उस चुनर को दुनिया भर की नज़रों से।
जब दुख मुझे छोड़ कर चला जाता है,
तुम वापस लौट आते हो।
मैं रोक देती हूं अपने कदम।
मैं बंद कर देती हूँ अपना नृत्य।
मेरे भीतर का संगीत भी शांत हो जाता है।
हृदय कठोर और भावनाएं कमज़ोर पड़ जाती हैं।
मैं समझ जाती हूं कि मेरी मृत्यु का वक़्त नज़दीक है।
मैं जानती हूं कि मैं दोबारा जन्म लूंगी।
दोबारा करूंगी नृत्य।
सो इस दफा घुंघरुओं को कस लेती हूं और भी अधिक मज़बूती से।
और ओढ़ लेती हूं वो चुनर जिसमें कुछ और मोतियों को टांकने की गुंजाइश अभी
बाकी है।